लिखुँ हाइकु
वरना तुम्ही कहो
भूलाऊँ कैसे?
तुम्हारी यादें
ये पानी-पानी
नहीं मेघ बरसे
दिल है रोया
खिले सुमन
बोला हाइकु
मत नहला मुझे
पहले रोले
होगी मुश्किल
सीना चीर के
सोचो आए दिल से
कैसे हाइकु
पलकें रोई
रंगें है ऐसे
इस गम़ में हम
मानो हाइकु
कहने लगे
लिखुँ हाइकु
वरना तुम्ही कहो
भूलाऊँ कैसे?
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 11:50 am 3 टिप्पणियाँ
लाई किताबें
फिर भी क्यूँ अज्ञान
दुखी "रचना"
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 11:13 am 0 टिप्पणियाँ
नाहर जी भी
अब हुए बैचेन
मेरी तरह
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 5:31 pm 0 टिप्पणियाँ
शुक्रिया करूँ
के दूँ सम्मान, और
लिखुँ हाइकु
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 7:30 pm 0 टिप्पणियाँ
बेचदी हया
अब तु बोल कैसे
नारी अबला
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 5:47 pm 3 टिप्पणियाँ
गेंद व बल्ला
सौ करोड़ मिलके
करते हल्ला
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 5:45 pm 0 टिप्पणियाँ
जरा सी छींक
चार दिन की छुट्टी
बहाना रेडी
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 5:43 pm 0 टिप्पणियाँ
पेट में कैंची
भूल गये साहब
हे आरक्षण
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 5:41 pm 1 टिप्पणियाँ
खूबसूरत
तेरी आंखे सबसे
मनमोहक
प्रस्तुतकर्ता गिरिराज जोशी पर 5:20 pm 0 टिप्पणियाँ