लाई किताबें
फिर भी क्यूँ अज्ञान
दुखी "रचना"
समझेँ इसे
मानवता का रूप
अक्षरज्ञान
न होती हिन्दी
अभिव्यक्त करता
खुद को कैसे?
कहे "संजय"
कैसे निर्बल हिन्दी
सबल रहे
है प्रोपेगैंडा
दिखावटी दिवस
कहे "आशीष"
हिन्दी दिवस
"खालीपीली" आक्रोश
दिल की टीस
"जगदीश जी"
कुछ कम ही बोले
"नाहर जी" भी
बचे सदस्य
अभिव्यक्ति अपनी
सोच रहे हैं
दिल से बधाई
सभी हिन्दी सेवक
करें स्वीकार
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