लिखुँ हाइकु
वरना तुम्ही कहो
भूलाऊँ कैसे?
तुम्हारी यादें
जख्म़ गहरा और
चुभती शूलें
ये पानी-पानी
नहीं मेघ बरसे
दिल है रोया
खिले सुमन
आज फिर दिखे तो
आँखे बरसी
बोला हाइकु
मत नहला मुझे
पहले रोले
होगी मुश्किल
नहीं हाइकु प्रिये
याद तुम्हारी
सीना चीर के
सोचो आए दिल से
कैसे हाइकु
पलकें रोई
बच्चे लगे झुमने
बरखा आई
रंगें है ऐसे
इस गम़ में हम
मानो हाइकु
कहने लगे
अब तो मित्र मुझे
"और हाइकु"
3 टिप्पणियाँ:
किसकी याद??
इतना गम क्यूँ है?
क्यूँ आँखे नम?
कुछ हैँ गम,
कुछ होती खुशियाँ,
यही जीवन!!
बताऊँ कैसे?
कैसे लाऊँ लबों पे
उनका नाम
गम़ बहुत,
वो खुश तो मैं खुश
कटते दिन
सही कहा जी
खुशियाँ और गम,
यही जीवन!!
अलग सी बात
अलग सी रात
अलगाव अलाव सी
आंच देता
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